पती-पत्नी

तब आदम ने कहा अब यह मेरी हड्डी में की हड्डी और मेरे मांस में का मांस हैः और इसका नाम नारी होगा, क्योंकि यह नर में से निकाली गई है।

उत्पत्ति 2ः23

   हम में से बहुत से भाई बहन ये सवाल पूछते हैं कि परमेश्वर ने हवा को आदम की पसली से ही क्यों बनाया, पैर की, सर की या फिर कमर की हड्ड़ी से क्योें नहीं बनाया आखिर परमेश्वर ने पसली को ही क्यों चुना।
   अगर परमेश्वर आदम की सर की हड्ड़ी से हवा को बनाता तो शायद हो सकता था कि हवा अपने आप को आदम से बड़ा समझती, और उस पर शासन करने के बारे में सोचती, परन्तु परमेश्वर ने हवा को आदम पर शासन करने के लिये नहीं बनाया। जैसे आज के समय की कुछ बहने अपने पति पर शासन करती हैं, और अपने पती को तुच्छ समझती हैं, और उसका आदर नहीं करती। सायद इसीलिये परमेश्वर ने हवा को सर की हड्डी से नहीं बनाया।
   परमेश्वर ने हवा को पैर की हड्डी से भी नहीं बनाया, ताकि आदम हवा को तुच्छ न समझे और ये न समझे कि ये तो मेरे पैर के समान है। जैसे आज देखने को मिलता है कि बहुत से भाई अपनी पत्नी को तुच्छ समझते हैं, उसके साथ मार-पीट करते हैं और उसके साथ दुरव्यवहार करते हैं। 
  परन्तु परमेश्वर ने हवा को आदम के हाथ के नीचे की पसली से बनाया, यहाँ पर हाथ सुरक्षा को दर्शाता है, ताकि आदम अपने हाथ से हवा की सुरक्षा करे और दिल के पास में से बनाया ताकि उससे अपने समान प्यार करे।
   इसलिये नहीं कि आदम हवा पर शासन करे और न ही हवा आदम पर शासन करे, अपितु एक दूसरे का आदर करते हुये जीवन भर साथ-साथ चलें और जीवन में आगे बड़े।
  इसलिये उत्पत्ति 2ः23 में आदम भी कहता है कि ये मेरे हड़्ड़ी में की हड्डी और मेरा माँस में का माँस है, अर्थात मेरे समान है इसलिये उसने उसका नाम नारी रखा ये कहकर कि ये मुझसे निकली हुई है। इसलिए आप एक दूसरे से अलग होने कि कोशिष न करे, तब परमेश्वर आप दोनों को आशीष देगा और फलवन्त करेगा। 
  इस प्रकार परमेश्वर का वचन हमें इस कहानी से यही सिखाता है। कि नर और नारी एक दूसरे को तुच्छ ना समझे अपितु एक दूसरे का आदर, सम्मान करें। जीवन में आगे बढ़े, आशीषित और फलवन्त हों। 
               प्रभु आपको इस वचन के द्वारा आशीष दे।
प्रार्थनाः- प्रभु जी हम प्रार्थना करते हैं कि हर एक पती-पत्नी आपस में एक दूसरे का आदर करें और कोई भी एक दूसरे को तुच्छ ना समझे अपितु एक दूसरे से अपने समान प्रेम रखें और जीवन में आशीष पायें, यीशु के नाम से मांगते हैं, आमीन।
 

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